तन्हायियों में जागती हुँ
तन्हायियों में सोती हूँ ...
न सुबह हुई
न शाम हुई...
मूह मोड़ के न बैठी हूँ
कोई अकेलेपन की साया में ...
मेहकती फूलों के खुश्बुओं से भरा
ये सुहाने मौसम में
न में हुँ न मेरी छाया है
सिर्फ मेरा मन है उसी तन्हायियों में...
चमकते हुए शबनम के पतझड़ों पर
खिलती हुयी मुस्कराहट की तरह
युही गुनगुनाती हुँ उसी तन्हायियों में...
न मंजिल है न ठिकाना है
चलती रही हूँ राहों में नंगे पाँव
यूही उसी तन्हायियों में..!!
subhaanallah...bahut khoob
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